फकीर
फकीर
मत पूछ हाल फकीरों का।
उन मस्त मलंग राहगीरों का।
जिंदगी वो ही जी जाते हैं।
हर डर को डरा वह जाते हैं।
कोई उनका भले ही हो ना हो
वह तो सबके हो जाते हैं।
पैसों से उनका काम नहीं।
अमीर गरीब की उन्हें पहचान नहीं।
अपनी मस्ती में जीते हैं वह
भले ही लोग उनका सम्मान करें या नहीं।
पैसों से उनको हरगिज ना तोलो।
उनके बारे में कुछ भी बोलो।
वह बोलने से होते परेशान नहीं।
क्योंकि उनकी है शान नई।
वह मस्त मलंग से घूमते हैं
अपनी मस्ती में ही झूमते हैं।
परमात्मा के प्यारे बच्चे वो
झोली में आशीर्वाद लिए घूमते हैं।
फकीरी के सुख-दुख वो क्या समझें
जो पैसों के लिए ही जीते मरते है