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BRIJESH JAYASWAL

Drama

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BRIJESH JAYASWAL

Drama

फिर से थाम लूँ उंगली तुम्हारी

फिर से थाम लूँ उंगली तुम्हारी

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फिर से थाम लूँ मैं वो उंगली तुम्हारी

हे पिता !


उंगली पकड़ कर तुमने

चलना सिखाया है मुझे…

जीवन की ठोकरों से

संभलना सिखाया है मुझे…


कैसे भूल सकता हूँ मैं उस त्याग को

जो किया था तुमने मेरे लिए…

कैसे भूल सकता हूँ मैं उन तकलीफों को

जो झेली थी तुमने मेरे लिए…

कैसे भूल सकता हूँ मैं उन खुशियों को

जिन्हे तज दिया था तुमने सिर्फ मुझे खुश देखने के लिए…


अब बारी मेरी है कि

कभी दुःख ना पंहुचे तुम्हारे दिल को…

अब बारी मेरी है कि

कभी अहसास ना हो तुम्हे अकेलेपन का…

अब बारी मेरी है कि

फिर से थाम लूँ मैं वो उंगली तुम्हारी…


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