पहचान
पहचान
किन्हीं को ये हाथ पसंद है,
कोई कमल दबाये बैठे हैं!
हर कोई सम्मोहित है यहाँ,
मन में नेता बसाये बैठे हैं!
सियासत घर कर गई इतनी,
सब के सब बौराये बैठे हैं!
लड़ रहे है चड़िया पे सभी,
नेता ये नज़रें छुपाये बैठे हैं!
देश गुलशन, है माली गायब,
ये फूल यहाँ मुरझाये बैठे हैं!
हर इंसान है दुश्मन तुम्हारा,
सबको नेता ये समझाए बैठे हैं!
सबका धन लुटा दिया ये मानो,
ख़ुद का बाहर छुपाये बैठे हैं!
जनता है बस लड़ने को तैयार,
हरेक पैंतरा आजमाए बैठे हैं!
ख़ुद के चेहरे हैं बहार जैसे,
जनता के तो कुम्लहाये बैठे हैं!
सियासत है तमाशा मेरी मानो,
बरसों से तमाशा चलाये बैठे हैं!
ये दंगों में मारे गए हैं बच्चे भी,
यहाँ कई बस्तियाँ जलाये बैठे हैं!
क़लम आग उगलती नहीं अब,
क़लमकार स्याही सुखाये बैठे हैं!
देख कर हालत देश के रोते हैं,
हम इन चश्मों को सुजाये बैठे हैं!
दोस्त अब जाति-धर्म बन गए हैं,
यही पहचान अपनी बनाये बैठे हैं!
उल्लुओं ने अँधेर मचा रखा है,
हर डाल पे तशरीफ़ टिकाये बैठे हैं!
उसूलवालों को पूछता नहीं कोई,
गोया उनपे सब भौंहे चढ़ाये बैठे हैं!
देश में कहाँ क्या ख़बर बन जाए,
ख़बरनवीस टकटकी लगाए बैठे हैं!
मैं ही देश हूँ, कब समझेंगे हम ये,
ख़ुद ही खुद की ग़ैरत लुटाये बैठे हैं!
यूँही चलता रहा न बचेगा वतन ये,
वतन पे आँख दुश्मन गड़ाए बैठे हैं!
गर अब भी तक़रीरें समझ न पाए तो
राँची में आपका नाम लिखाये बैठे हैं!