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Hritik Raushan

Tragedy

4.8  

Hritik Raushan

Tragedy

फासला

फासला

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आओ सुनाऊं आपको एक किस्सा

एक प्रतिशत आबादी के पास,

है सम्पत्ति का निन्यानबे प्रतिशत हिस्सा।

अक्सर रुपया सारी गलतियों में

टांका लगा देता है

और गरीब मामूली ग़लती के लिए

ज़िन्दगी भर पछताता है।

गरीब बहलाते खुद का पेट

रोटी नहीं नसीब हो जब

साठ सत्तर रुपए देकर

तुम फुसलाते हो उन्हें तब।


क्या इनकी गरीबी की पहचान 

कभी बदलेगी?

क्या वो दो पैसों की पुड़िया

इनका भाग्य भी बदेलगी?

अरे, तू क्या जाने कीमत

किसी कम नसीब की

कभी झोली खाली

होती नहीं किसी गरीब की

उसके आँसू बहा-बहा कर भी

कम नहीं होते

तू क्या जाने कितनी

अमीर होती आंखे गरीब की।


खड़े हैं लोग आशा में

गली गली के मोड़ पर

एक से हटाओ ध्यान,

ध्यान दो करोड़ पर।

है यह समानता नहीं,

कि एक तो अमीर हो

दूसरा व्यक्ति चाहे ही

फकीर हो

न्याय हो तो आर पार

एक ही लकीर हो।

मिले सूरज आसमां से,

किरणें मिले धरती से

हो समानता ऐसी,

मनुष्य अपना ग़म भूला दे।


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