मुखौटा
मुखौटा
उसके हर दिन की शुरुआत होती है
एक असमंजस के साथ..
“कौन सा पहने आज ”
“किसके लिए पहने आज ?
इतने सारे मुखौटे तो पड़े हैं
झूठी दोस्ती वाला, कॉलेज का मुखौटा,
झूठे तारीफों वाला, दोस्तों का मुखौटा ?
झूठे प्यार का, प्रेमी/प्रेमिका के लिए
मुखौटा ?
उनकी ज़िम्मेदारी सर लेने को उत्सुक ,
बूढ़े माँ-बाप के लिए मुखौटा ?
पूरे घर का काम कर, थकावट में भी
परिवार को खुशी खुशी खाना
खिलाने वाला मुखौटा?
मासिक दर्द में भी ,मुस्कुरा देने वाला मुखौटा?
बहुत से मुखौटे तो अब पुराने भी हो चले
जैसे टीचर्स के लिए था चापलूस मुखौटा।
जैसे दोस्तों की कुसंगतियों को समेटे ,
परिवार वाला नादान मुखौटा।
कितने ही झूठे जिए हैं और जी रहा है वो
इन मुखौटों के पीछे छुप कर
डरता भी है क्योंकि जानता है कि
अकेला नहीं है वो मुखौटा लगाए बल्कि
पूरी एक भीड़ है।
कभी कभी तो जी करता होगा
की नोंच डाले
एक एक कर के इन सारे मुखौटों को।
और पा ले खुद को
असलियत तक।
पर मुखौटों से छुटकारा पाने का,
था ये भी एक मुखौटा।
