छोटू
छोटू
रुई से मुलायम बादलों के बीच, दूर क्षितिज के आगोश में जाता सूरज,
बालकनी से टघरती बारिश की बूंदों के आवाज के साथ,
अगर मिल जाए एक प्याला गरम चाय;
एक चाय प्रेमी के लिए यही तो है एक रूमानी शाम।
हां,उसी रूई से मुलायम मुट्ठियों में चाय का गिलास पकड़कर,
भागता है एक मेज से दूसरे मेज एक छोटू भी;
उन्हीं ठंडी लहरों में उस बारिश की बूंदों से धोता चाय का गिलास है एक छोटू भी।
हमें पसंद है गरमी में भी चाय,अरे गरमी में चाय नहीं पीते हो तो कैसे चाय के दीवाने!
आजकल तो हमें आंच में झुलसी हुई तंदूरी चाय से प्रेम सा हो गया है;
पर शायद नहीं हुआ प्रेम उस चूल्हे की आंच में झुलसते छोटू के बचपन से प्रेम!
हमें पसंद है पढ़ना किताब गरम चाय की चुस्की के साथ,
पर है छोटू किताबों की दुनिया की एक चुस्की से महरूम।
हम चाय प्रेमी अलग - अलग चाय को भी देतें हैं उनका खुद का नाम,
पर क्यूं हर छोटू का है बस एक ही नाम?
क्यूं गुम है उसका अपना अस्तित्व?
