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Haripal Singh Rawat (पथिक)

Classics

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Haripal Singh Rawat (पथिक)

Classics

पौधा

पौधा

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आँगन के दुर्गम कोने पर,

इठलाता, मुस्काता सा,

उग गया न जाने कैसे,

इक पौधा, संकुचाया सा।


पर्ण, लिये आधार धरा का

खोले अपने सुर्ख नयन।

कालजयी सा, लिये रुप,

कैसा जीवंत, सह धूप-तपन।


सह तेज-ताप, बरसा-आँधी,

पा गया, स्वरुप वह अभिलाषी,

अचरज होकर हूँ सोचता,

आँगन के दुर्गम कोने पर,


मुस्काता, इठलाता सा,

बन गया न जाने कब पौधा,

विशाल पेड़, हर्षाया सा।


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