पौधा
पौधा
आँगन के दुर्गम कोने पर,
इठलाता, मुस्काता सा,
उग गया न जाने कैसे,
इक पौधा, संकुचाया सा।
पर्ण, लिये आधार धरा का
खोले अपने सुर्ख नयन।
कालजयी सा, लिये रुप,
कैसा जीवंत, सह धूप-तपन।
सह तेज-ताप, बरसा-आँधी,
पा गया, स्वरुप वह अभिलाषी,
अचरज होकर हूँ सोचता,
आँगन के दुर्गम कोने पर,
मुस्काता, इठलाता सा,
बन गया न जाने कब पौधा,
विशाल पेड़, हर्षाया सा।
