नूतन वत्सर
नूतन वत्सर
मदमस्त बना होता है, मनु!
कहता है, वत्सर है नूतन॥
अवसर निज, खोज ही लेता है।
किल्विष आतुरता ढ़ोता है॥
भला!
कब अह्न नवल ये कहता है?
रे मूढ़!
किसको, बालक सा छलता है?
त्यौहारों का बस ये मूल,
बाँटें खुशियाँ, मनु-जन्तुक समूल,
फिर क्यों?
दुरा अह्न को करता है,
क्यों मदमस्त बना यूँ फिरता है?
जो मेरी माने उक्त बात,
पायेगा पथ पर निज प्रभात,
प्राणी-जन को खुशियाँ देगा,
कान्तार प्रसून सा महकेगा॥