पावन यज्ञ से लक्ष्य धारण
पावन यज्ञ से लक्ष्य धारण
हमने इस गुलिस्तां से, सपने संजोए थे,
भावनाओं के फूलों से, माला पिरोये थे,
दुधमुंहे बालक, एकटक नजर लगाये थे,
सद्भावित डोर से, उद्गारित लक्ष् उड़ाये थे।१।
बिखेरेगी खुशबू शीतल भाव का ये चंदन,
अनेकता में एकता का भाव लेगी चिंतन
शांति के सपन का जो कपोत उड़ाया था,
खुद का खूं, यूं सोच मिट्टी में मिलाया था।२।
न सोचा, सब धर्म का दलदल हो जायेगा,
मानवता का हाथी, इस कदर फंस जायेगा,
आत्मीयता के बंधन, स्वार्थ से टूटते जायेंगे,
इंसानियत के चोले ओढ़ हैवान बन जायेंगे।३।
धरा के स्वर्ग पे आतंकी शैतान टहल रहा है,
अंधविरोधी आग से ,अब देश झुलस रहा है,
खुशहाली की धरती पर अब उग रहा है गम,
ज्यों हो उजाले की शाम पर अंधेरे का संगम।४।
सोने की चिड़िया जैसे असहाय सी हो रही है,
आस्था के पिंजड़े से, अब विश्वास खो रही है
गर ऐसा चलता रहा, हम सभी बिखर जायेंगे,
देदिव्य इतिहास में, यूं काली रात जोड़ जायेंगे।५।
अवसाद को छोड़ के, अब साधक यज्ञ जगाओ,
अभिनव सृजन शक्ति से देश का मान बढ़ाओ,
ये समय नहीं, आपस में लड़के बिखर जाने को,
आदर्श धर्म अपनाना है ,पावन उद्देश्य पाने को।६।