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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

पाषाण

पाषाण

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संसार के सभी पाषाण 

कभी बहुत कोमल हुआ करते थे

युगों पहले नकार दी गई इनकी कोमलता

मन के हाथों से छूकर तो देखो


अनसुनी कर दी गई इनके कोमल हृदय से

निकलती धक -धक की आवाज

हमने सोचा ये मर गये


अनदेखी कर दी गईं मुठ्ठी भर 

प्रेम को तरसती इनकी दो आंखें

ये आंखें मींचकर बैठ गए


दी जाती रही इन्हें चोट पर चोट

इनकी आंखों से बहते रहे आंसू 

हमने गर्व से कह दिया

नदियां निकल रही हैं 


दर्द से कराहते- कराहते एक दिन 

ये ख़ामोश हो गये

कठोर हो गये 

पाषाण हो गये


मगर धड़क अब भी रहे हैं

कान लगाकर सुनो तो सही 


 संसार के सभी कोमल हृदय 

दर्द से कराहते -कराहते एक दिन

हो जाते हैं पाषाण

हो जाते हैं खामोश

मगर धड़कते तब भी हैं 


हो सके तो इन पर अंजुरी भर प्रेम छिड़क दो 

ये जी उठेंगे ।


   


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