पापा
पापा
जब मन में रहते हो पापा हमारे।
तब अनुपम रचना करता मन भी ।
अंतर में उत्साह एक भर आता।
सपने सजने लगते सौन्दर्य युक्त।
विभोर होता मन याद में पापा की।
जब याद जगती पापा की मन में ।
तब वह क्षण बन जाता उत्सव।
उमंग की धारा हृदय में भर आती।
राह दिखाती लक्ष्य हमारा बताती।
आत्मविश्वास के दीप को बनाती।
बात पापा की हर एक होती अनूठी।
हर उलझन को संवारा करती।
मन को शांत और संयम बनाए रखती।
समर्पित होने का सौंदर्य है बताती।
अनुभूति पापा की हमें सजग बनाती।
फिर कौन सा कार्य होता कठिन |
मंद मंद समीर बहने लगती।
साथ सुरभि भी बिखरने लगती।
मन को एक सकून विश्राम मिलता।
रहते मन में जब हमारे पापा हो।