विष्णु की सब्जी
विष्णु की सब्जी
एक सच्ची घटना ने मेरे अंत करण को गहराई से प्रभावित किया, उसी घटना को मैं कहानी के रूप में दे रही हूं। एक कृष्णलाल सब्जी बेचा करता था जब से वह बीमार रहने लगा, तब से उसकी पत्नी और बेटा विष्णु सब्जी बेचने लगे, काम अच्छा चल निकला था। अब कुछ दिन से विष्णु की मां अस्वस्थ रहने लगी दवा भी ठीक से नहीं लग रही थी, विष्णु अब माता-पिता की देख-रेख करते रहने के कारण सब्जी नहीं बेच पा रहा था। एक दिन वह मां से बोला- "मां, दवाई के पैसे कैसे आएंगे," मां ने कहा -" बेटा आएंगे - तू सब्जी ठेले पर रखा आ, सब सब्जी के दाम एक कागज पर लिख देना- साथ में यह डिब्बा भी रख देना। सब लोग अपनी जरूरत के अनुसार सब्जी ले लेंगे, डिब्बे में पैसे डाल देंगे, बाकी हमारे ईश्वर संभाल लेंगे -- "कुछ दिन लोग अपने आप ही सब्जी लेकर उसके अनुसार मूल्य डब्बे में डाल कर लेने लगे। मां बोलती थी कि शाम को जाकर ठेले के डिब्बे से पैसे ले आना। विष्णु ने ऐसा ही किया। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। जब मां स्वस्थ हुई, तो ईश्वर को धन्यवाद दिया। विष्णु आज सब्जी बेचने जा रहा था, वह एक अंतर और एक जागरूकता और आनंद महसूस कर रहा था,- वास्तव में जहां विश्वास है वहां ईश्वर है।