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Indu Prabha

Inspirational

4.8  

Indu Prabha

Inspirational

अनूठा पल

अनूठा पल

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मन हुआ था प्रकाश में एक दिन,

आनंद की धारा हो रही थी प्रवाहित।

अंतः स्थल में जगमगाई दिव्यता,

विवेक के साथ सुखद जीवन आशा।

देखा तबभी बराबर से आती कार को,

बैठे पाया वहां आनंदमई मां को।

समीप था प्रवेश द्वार धर्मशाला का,

रुकी मां कुछ देर बैठ कुर्सी पर वहां।

किया तब प्रणाम जाकर पति के साथ,

मां का प्रथम दर्शन पाया कितना सुगम।

सत्य ज्ञान कृपा दिव्यता के पुंज का,

तृप्त नहीं हो पा रही थी हमारी निगाह।

में, तू ,यह, वह का न था कुछ भेज भेद,

सदा मौन रहने वाली मां ने कहा -

- ‘सत्यम ज्ञान अनंत ब्रह्म’।

यह कह फिर मौन हुई मां,

मन ने फिर उसका विस्तार किया-

-’ब्रह्म सत्य है अस्तित्व आनंद मय’। 

हुआ तब उन्मेष ज्ञान का,

सत्य, शिव, सुंदरम का था विस्तार|

भक्ति ज्ञान आनंद हुआ साकार,

जीने करने पाने की भावना ने लिया विराम।


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