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Indu Prabha

Children Stories

4.8  

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अपना पंखा

अपना पंखा

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होती है प्रकृति में कला प्रतिबिंबित जब,

उभरते तब जीवन के रूप रंग हमारे।

जा रही थी दया, चेतना बहने दो,

बीच राह चलते, मिला खेत ईख का एक।।


व्याकुल थी प्यास से वह दोनों बहने,

देखा तभी, बेच रहा था गन्ना कोई जन।

लिए खरीद, कुछ गन्ने उन्होंने तुरंत,

हुआ मन तृप्त, पाकर मिठास गन्ने का।।


उतारे हुए लंबे-लंबे छिलके गन्ने के,

लग रहे थे सभी अनुपम ताजगी भरे।

बनाएं दया ने सुंदर पंखे इन छिलकों से,

भरे चेतना ने विविध रूप रंग पंखों में।।


जब कोई होता हुनर पास हमारे,

बदल जाती कठिनाइयां भी अवसरों में।

गुणवत्ता चीजों को, ले जाती ऊंचाइयों पर,

प्रकाशित होता ध्येय तभी भविष्य का।।


बने पंखे सभी लुभावने, सुंदर आकर्षक,

हर लेते ताप सबका, जगाते चेतना नई।

दूर मंदिर से आती गूंज घंटों की,

घोल देती मधुर संगीत वातावरण में।।


जा रही थी उधर से एक टोली भक्तों की,

देखें विविध चित्रित पंखे नवीन।

ले लिए वे पंखे, दी मुद्रा तुरंत,

ताप हरण करने को, ताजा स्पंदन पाने को।।


होते पास हमारे कार्यकलाप अनेक,

होता जीवन में बहुत कुछ छुपा हमारे |

ध्यान जब केंद्रित करते सकारात्मकता पर,

उपलब्धि हमारी विजय बन करती सपने पूर्ण।।


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