फागुन की धुन
फागुन की धुन
फागुन की धुन बजाई के कान्हा निंदिया चुराई ले ,
धुन सुन सुन सखियों का मन हिलोरे ले ,
उड़ उड़ जाए यह चुनरिया पुरवइया जब चले ,
अब नाचत लगे मोर कोकिल करत शोर!
दूर कोई बंसी बजाई के,
गीत फागुन का सुनाई रे!
पंचरंगी मैंने चुनरिया री ,
खेतन में सरसों हैं पीली पीली,
मेरी चुनरी के रंग उड़े हरे नीले,
मोहे लागे न नजरिया बांके वाके की!
पायल मेरी छम छम बाजे,
कंगना मेरा खनखन करें!
केसर सी फूल रही यह हरी घास,
चंदन की कैसी फैल रही बॉस,
बिखरे हैं फागुन के रंगीन मोती,
करने को अभिनंदन बरसाने का आज!
यह रंग और फाग सब संग ले जाए,
जब फागुन में तेरी बंसी बाजे कन्हाई!