हमारा गौरव हमारी शान
हमारा गौरव हमारी शान
खोए पाए की प्रबल राह बनी अति निराली
करते अवलोकन चिर पुरातन व नित्य नूतन में ।
पाया जो था हमने क्या अपना पाए उसको ?
खोया जो था हमने क्या जान पाए उसको ?
प्रसाद रूप मे पायी हमने मनोहारी संस्कृति को
श्रंगार बन मानव जीवन को सुवासित किया ।
भारत भाल पर तिलक बन वह रहनुमा हमारी ।
अति पवन सर्वोपरि वैदिक भूमि कहलायी ।
आँचल सदा रहा भरा रहता वेद महिमा मंडल से ।
इस भूमि में प्रह्लाद, ध्रुव आरुणि व बालिकाएं पली ।
अपने बलिदानों से रची गौरवपूर्ण रचनाये अनेक ।
अंकित कर गए नाम अपना वे स्वर्ण अक्षरों में ।
पूज्य रही है वैदिक संस्कृति अपनी विविधता से ।
मूल आधार बनी सनातन विपुल कला संदेशो की ।
गीता, वेद, पुराण, उपनिषदों की अनेक गाथाओं से ।
सींचा, सवारा, संजोया विविध रूपों में आँगन को ।
अमूल्य निधि को पाया ऋषियों, मनीषियों से ।
जाना समझा सबकुछ पूर्वजों की महिमा से ।
भारत को विश्वगुरु के स्थान को पाना होगा ।
विश्वशांति भावात्मक रूप उज्जवल करना होगा ।