स्पर्धा
स्पर्धा
मिला अवसर एक जब बहु रूप पोशाक का
खिल उठा मन महका हृदय आनंद भाव से
उत्सव था अति भव्य और स्पर्धा थी अनोखी
धारण मुकुट किया भारत माता के नाम पर
कला और कलाकार होते एक साकार रूप में
बनता पल वह वेश सिंगर रूप रंग के अनुरूप में
हिमालय सी गरिमा गंगा की पवित्रता सी
मस्तक नत्त हृदय तृप्त हुआ भावना की अति से
हाथ में गौरव मय तिरंगा दर्शाता जब सत्य हमारा
अहितकारी भी नियंत्रित हो रहा मिलाते चलते
नए संकल्पों को देता जिंदगानी जब यह
जल सिंचित नदिया प्रेम पुष्प को महकाती खिलाती
भारत माता बनती ललित कला और नित्य की जननी
आत्म तत्व को सत्य से मिलाती बोध सत्य का कराती
खूबसूरत जहां जब होता चांद जमीन पर आता
पुलकित होती प्रकृति उमंग की रंगीन फुहारों से
बन जाता यहीं पल ज्ञान का अपूर्व उद्गम एक
मन मयूर बन उर मैं नवज्योति को जलाता
प्रेम भाव को जन जन मे अंकुरित कर तम दूर करता
पुनीत नूतन चेतना को जन मन में भरता
माटी का सिंगार बन हरियाली स्नेह गीत गाती
फूलों से महकती क्यारियां श्रद्धा को जीवन देती
सब लोग उमंग से भर आकांक्षा सजाते
जीवन पल में रूप रंग भरते आनंद स्नेह दीप से।