केंद्र बन रहते
केंद्र बन रहते
सदियों से चली आई परंपरा हमारी
फैसले लेते बुजुर्ग , घर में खुश रहते हैं हम
कभी वे प्रेरणा बन , विश्वास जगाते
कभी महत्वकांक्षी बन , आधार बनते
ले चलते ऊंचाइयों पर हमारे काज।
बुजुर्ग रहते घर में केंद्र बन
फिर चाहे किधर घूमे हम सब
हर पल जुड़ा रहता संपर्क उन्हीं से
रह पाते कितना स्वतंत्र तब हम
हर इच्छा को मिलती है एक उड़ान।
तृप्त हो जाता जाता मन शीतल छांव में
भूल जाते हैं हम जग की दौड़-धूप
बिसर जाती है जीवन की कड़वाहट
वह पूजनीय है हमारे , केवल बुजुर्ग नहीं
होता गंगाजल , जल केवल पानी नहीं।
नाप पाए न आज तक उनकी गहराइयां
जान पाए न अभी तक उनकी अच्छाइयां
मुश्किल वक्त में बन जाते उम्मीद हमारी
जान जाते मन की अनकही बात भी
बिन कहे टाल देते कुछ परिहास में।
हम भी झुकाते नित्य शीश अपना
फलती फूलती नित दुआएं उनकी
मन आनंद स्रोत बन जाता
वृंदावन की रज , धूल नहीं कहलाती
बुजुर्ग के रहते घर , नंदन वन कहलाता।