पापा का अनूठा प्यार
पापा का अनूठा प्यार
मेरे पापा का प्यार,
उनका दूर का दुलार,
मुझे यूँ ही रुलाता है,
उन्हें पास बुलाता है।
प्रातः दूरभाष से जगाना,
पढ़ने के लिये बिठाना,
समय पर खाने को कहना,
उन्हें पास बुलाता है।
दूरभाष से ही सारे हुक्म,
उसी से ही इच्छापूर्ति,
वहीं से हमे समझाना,
उनकी हमें याद दिलाता है।
माँ से स्वीकृति न मिलने पर,
हमारा पापा को मनाना,
पापा द्वारा माँ को मनाना,
माँ का हमे स्वीकृति दे जाना।
पिता का वो सच्चा प्यार ही है,
जो हर बुराई से बचाता है,
पिता की वो कड़ाई ही है,
जो बुरे कर्मों से रोकती है।
बच्चों की हर एक इच्छा का,
ज्ञान पिता को होता है,
बच्चों की हर एक इच्छा का,
सम्मान पिता को होता है।
हमारे भविष्य की कामना,
कर्म से पहले सोचने पर उन्हें,
मजबूर, सावधान कराता है,
उन्हें थोड़ा सख्त बनाता है।
उनकी गर्मी में जो नर्मी है,
उसे पहचानना मुश्किल नहीं,
किसी अन्य से पिता की तुलना,
जन्मों में भी मुमकिन नहीं।
उनका त्याग यूँ वनवास,
सब हमारे लिए ही होते हैं,
बच्चों के लिए ही पिता,
हर रात गहरी सोच में होते हैं।।
