पालनहार कहाता है
पालनहार कहाता है
हैं किसान के आँसू सूखे,
ऊपर से मुस्काता है !
खेतों में फसलें औ सपने,
बोता और उगाता है !!
माटी चंदन तिलक लगाता,
धरती को वह माँ माने !
रात दिवस श्रम भीगे भीगे,
आनन पर हैं मुस्काने !
उपजाता है अन्न खेत में,
पालनहार कहाता है !!
कड़ी धूप है रात जागरण,
सर्दी मिले कड़ाके की !
मौसम सदा परीक्षा लेता,
उपर से लेता रब भी !
वाज़िब दाम नहीं फसलों के,
अपनों से लुट जाता है !!
मँहगाई की मार झेलता,
खाद बीज मँहगे मिलते !
उम्मीदों के जो प्रसून हैं,
कहाँ सरलता से खिलते !
लागत पाता, लाभ कभी है,
पर संतोष जताता है !!
जीते जी कब ऋण उतरा है,
जीवन भर है बोझ लदा !
मन पाया है कंचन जिसने,
भाग्य कहे बस यही बदा !
रूखी सूखी मिले पेट भर,
इतना हक़ जतलाता है !