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Manjul Singh

Abstract

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Manjul Singh

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पागल लड़की

पागल लड़की

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तुम चीजों को

ढूंढ़ने के लिए रोशनी का

इस्तेमाल करती हो

और वो गाँव की पागल लड़की

चिट्ठी का,

वो लीपती है

नीले आसमान को

और बिछा लेती है

धूप को जमीन पर


वो अक्सर चाँद को सजा देती है

रात भर जागने की

वो बनावटी मुस्कान लिए,

नाचती है

जब धानुक बजा रहे होते है मृदंग


वो निकालती है कुतिया का दूध

इतनी शांति से की बुद्ध ना जग जाएं

और पिला देती है

नींद में सोई मछलियों को

उसने पिंजरे में कैद कर रखे है

कई शेर जो चूहों से डरते हैं


वो समझती है

नदी को किसी वैश्या के आंसू

इसलिए वह बिना बालों के धुले

अपनी बकरी को डालती है

मांस के टुकड़े

और मेरी कविता सुनाती है

जिसमें मैंने औरत की देह से

उसके हाथ काट कर

अलग नहीं किये थे!


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