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Sudha Singh 'vyaghr'

Abstract

4.6  

Sudha Singh 'vyaghr'

Abstract

ओ फरिश्तों

ओ फरिश्तों

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ओ फरिश्तों..

ले जाओ

मेरी रूह को

वहाँ जहाँ,


मेरा प्रिय

व्याकुलता

से तक रहा

है राह मेरी।


पहुंचा देना

संदेश मेरा

विरहाग्नि से

दग्ध काया

में कैद थी

जो रूह,


वो आजाद

हो गई आज

उनके अभिसार

के लिए।


कहना यह

प्रेम

अलौकिक

अमर्त्य है।


उनकी आँखों

से झरता

रक्त अब

पीड़ा देता

है मुझे,


इसलिए

रिहा हो

रहा हूँ मैं

इस पार्थिव

पिंजर से।


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