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Vikash Kumar

Romance

3  

Vikash Kumar

Romance

नज़्म

नज़्म

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पत्थरों को रगड़ा और आग लगा दी हमने,

मजहब और सियासत को हवा दी हमने।


गाँव शहर बन रहे थे मेरे देश में सब ओर,

पेड़ों को काटा और सड़क बना दी हमने।


मिट्टी की सोंधी खुशबू ढूंढता रहा हूँ सब ओर,

पत्थरों से पाटा और केंचुओं को सजा दी हमने।


हिचकियों में रह जायेंगी सब आह फकीरों की,

मशीनी है दुनिया और आवाज दबा दी हमने।


रोशनी का सैलाब इस कदर बढ़ाया गया 'कुमार' ,

आंखों को चोंधियाया और नींद को सजा दी हमने।



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