नयी पीढ़ी से
नयी पीढ़ी से
नई पीढ़ी से उम्मीदें तो है पर खास नहीं
जेहन से जो गाँधी,नेहरु या सुभाष नहीं ।
खुदगर्ज़ ख्याल,बेतरतीब बिखरे हुए बाल
तन पे तहजीब को सँवारते लिबास नहीं ।
बे लगाम तक़नीक़, और बदहबास तरक्की
बेशुमार ख्वहिशों कि है बूझती प्यास नहीं ।
न बुजुर्गो की इज्जत है ,न रिश्तों हिफाजत
पुरानी चीजें अब आती इनको रास नहीं।
क्या कहें अजय अब इस दौरे बदनसीब को
अपनी तबाही का जिसे ज़रा एहसास नहीं ।
