नये कसाई
नये कसाई
सस्ती जिसे चाहिए होना,
सोने से महंगी है भाई ।
शिक्षा के मंदिर में बैठे,
लगा मुखोटे नये कसाई।
अच्छी शिक्षा दिलवाने की,
मंशा उनके दर ले जाती।
इसी बात का लाभ उठाकर,
बना बना सबको जज्बाती।
तन से वस्त्र पैर से चप्पल,
छीन तलाक लेते हरजाई।
शिक्षा के मंदिर में बैठे,
लगा मुखोटे नये कसाई।
बच्चों को हम तोल रहे हैं,
धन से कितना कहो सही है।
जब मशीन वो बन जाते हैं,
कहते हैं संस्कार नहीं है।
माता पिता की सेवा छोड़ो,
करते बच्चे हाथा पाई।
शिक्षा के मंदिर में बैठे,
लगा मुखोटे नये कसाई।
शिक्षा के बदले धन लेना,
यह भारत की रीत नहीं है।
आदर्शों का गला घोटने,
में तो कोई जीत नहीं है।
उतर गई गाड़ी पटरी से,
घटना है लोगों दुखदाई।
शिक्षा के मंदिर में बैठे,
लगा मुखोटे नये कसाई।
लूट पाट पे करें नियंत्रण,
हमको वो सरकार चाहिए।
शिक्षा का अधिकार दिया तो,
फिर"अनंत"उपचार चाहिए।
जो निःशुल्क सरकार दे रही,
क्यों उस पे काली परछाई।
शिक्षा के मंदिर में बैठे,
लगा मुखोटे नये कसाई।
