न्याय
न्याय
प्रकृति सदा करती है न्याय,
नहीं वह सहती अन्याय।
कहते हैं देर से किया गया न्याय भी अन्याय होता है,
अन्याय के विरुद्ध बोलना भी न्याय होता है ,
और अन्याय को सहना भी अन्याय होता है।
मनुष्य ने जब-जब प्रकृति से अन्याय किया है,
प्रकृति ने भी सदा बदला अपना लिया है।
अन्याय पर मौन रहने वाला सदा ही रोया है,
धृतराष्ट्र ने भी अपने सौ पुत्रों को खोया है।
अब तो जागो,चुप न रहो,
न्याय के लिए कुछ तो कहो।
भगवान के घर में भले ही देर है ,अंधेर नहीं,
वहां सदा न्याय है, अन्याय नहीं।