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अख़लाक़ अहमद ज़ई

Classics

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अख़लाक़ अहमद ज़ई

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नया इतिहास

नया इतिहास

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नये दशरथ का वसीयतनाम

कैकयी सुनो--

यदि मैं शम्बरासुर के युद्ध में 

प्रहारों से अचेत होकर गिर जाऊँ 

तो तुम इस बार

रणक्षेत्र से बाहर मत लाना


मैं नहीं चाहता 

फिर कोई मंथरा पैदा हो

और --

तुम राम के अभिषेक के समय

मुझ पर वचनों से विमुख होने का

दोषारोपण करो


मैं नहीं चाहता 

कि अपने प्रतिज्ञा-पाश में बंधकर मरूं

हाँ --

यदि तुम मेरी अर्धांगिनी का फ़र्ज़ 

निभाना ही चाहो तो

केवल इतना करना कि

मुझे इन्द्र को सौंप देना


और कहना --

मुझे ढाल और तलवार की तरह

इस्तेमाल करें

ताकि --

मेरे मृत्यु का 

नये सिरे से इतिहास लिखा जाय


तब मुझे दुनिया शाप प्रतिफलित 

लक्ष्मण हमें लोकद्रोही

और कोई कौशल्या 

अपने को दासी ना समझे।


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