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अख़लाक़ अहमद ज़ई

Inspirational

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अख़लाक़ अहमद ज़ई

Inspirational

तुम्हारी तरह

तुम्हारी तरह

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याद आता है कल का रिश्ता

आज, जल रही लाश की तरह

चट-चट करके चिटक रहा है

कैसे ये रिश्ते

अंधेरे की खाइयों में उतर गये ?

याद आती है पिछली रात

जब मैंने तुम्हें 

लोरियों की जगह

व्याकरण सिखाया था

और --

उपमा, रूपक, अलंकार

बताया था

तभी तो तुम 

भाई को भाई कहते थे!

छंद, लय, तुकबध्द ज्ञाता

भावुक कवि कहलाते थे! 

वरना 

बहन को कुछ भी कह सकते थे!


दुख है, इतनी जल्दी भूल गये

अभी एक सदी भी तो नहीं गुज़री!

पर --

हमें वह प्रसव पीड़ा याद है

याद है वो दिन

जब मैंने कोशिश की थी

तुम्हारी माँ सो न जाय

और तुम अभिमन्यु की तरह 

अधूरे ना रह जाओ

पर आज मेरा तिलस्मी टूट गया 


-- छोड़ोअब 

शब्दों के साथ बलात्कार क्या करना? 

अब इसमें

सन् सैंतालीस की गर्मी भी तो नहीं! 

यदि हममें बंकिम, खारिस्तो बोतिफ

सान्डोर पेतीफी-सी सामर्थ्य होती तो

मैं भी किसी पर्वतारोही की तरह 

आकाश की नाभि से टकराते

पर्वत पर विजय का पताका फहरा चुका होता

तब इस शान्ति सागर में

खतरनाक भंवर ना बनते


इसमें तुम्हारी खामियां थीं

या 

मेरी ग़लती 

जो भी हो लेकिन 

अब मैंने एक ज़मीन तलाश ली है

उसमें सारे सूत्र बिखेरुंगा

ताकि --

आने वाली पीढ़ी अंधी ना पैदा हो

तुम्हारी तरह


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