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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

नया चलन आज का

नया चलन आज का

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चलन आजकल कुछ नया चला है

चमचों का ही अब बोल बाला है


किसी दूसरे का हक हथियाना

फ़ितरत से भरी नई कला है


झूठ फरेब सीखना मुश्किल नही

खुल चुकीं इनकी पाठशाला है


सबर आजकल उछलता फिरता है

न जाने किस तरह का हल्ला है


रिश्ते खाई में सुस्त पड़े हैं

बनावट का मुखौटा आला है


फूल आज भी उगते, महकते हैं

पर हाथों में काँटो की माला है


" मैं" की दौड़ में मानव ने

पहन रखा सफेद चोला है


धुंधले आजकल के दर्पण है

नही दिखता मुँह कितना काला है.



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