।। नवरात्रि ।। जय माता दी ।।
।। नवरात्रि ।। जय माता दी ।।
नवरात्रि नवम दिवा नवम रूप में,
सिद्धिदात्री माँ दुर्गा के नवम अंश ।
कमल पुष्प पर हैं विराजित माते,
सृष्टि हेतु बढ़ाती रहती माँ वंश ।।
जय जय जय माँ सिद्धिदातृ ।
तुमसे समापन शुभ नवरात्रि ।।
तुम्हीं कहलाती चतुर्भुजी माता ।
तुम्हीं संशय भय क्लेश त्राता ।।
तेरी कृपा यह जिसपर बरसे ।
अन्तर जिया सदा यह हरषे ।।
जा पर होहिं प्रसन्न तुम भवानी ।
अन्न धन भरतीं बनकर ज्ञानी ।।
तुम्हीं कहलातीं कमलवासिनी ।
जय जय माते विंध्यनिवासिनी ।।
माँ दुर्गा के नवीं अंश कहलातीं ।
भक्तों पर माता कृपा बरसातीं ।।
मुझपर भी माँ प्रसन्न शीघ्र होओ ।
मुझ दुखिया को तुम मत खोओ।।
एक हाथ माते तव चक्र विराजे ।
दूजे हाथ माते तव गदा ले साजे।।
तीजे हाथ लिए शंख हैं महारानी ।
चौथे पुष्प शोभे निज माँ पाणि ।।
भक्तों को माँ सिद्धि तुम हो देती ।
जीवन नैया माँ तब तुम खेतीं ।।
अरुण दिव्यांश खड़ा कर जोड़ी ।
मुझे माते तुम न जाओ छोड़ी ।।
रक्त वस्त्र माँ सुन्दर तुम्हें सोहे ।
गले माला माते और भी लोभे ।।
अबतक माते दिखीं तुम नौ रूपा।
आज सब समाहित हो गईं एका।।
" शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा,
कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी ।
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदातृ, "
एकरूप निहित दुर्गा नारायणी ।।
आज नवरात्रि नवम दिवस को माता जी की नवम रूप माँ सिद्धिदात्री को नमन करते हुए
आप समस्त माताओं, बहनों, बंधुओं, बच्चों एवं वृद्धजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
