नवांकुर
नवांकुर
नवांकुर
फिर से जन्मा है
प्रकृति का ये अप्रतिम सौंदर्य
भोर की भीनी भीनी हवा
और अविरल
चिड़ियों की चहचहाट
यूँ प्रकृति आज अपने
रूप पर इतराई
खुले आसमां में
स्वछंद विचरण करते
ये पक्षियों का समूह
इनकी मस्ती और
खिलखिलाहट ही कुछ अजब है
पहाड़ों पर से उतरा
हमारा खौफ
अब तो सौंदर्य की
पराकाष्ठा को छूए
कलकल बहती नदियों का पानी
निर्मल और सुकून से भरा
स्वछंद विचरण करते ये पशु
अपने अस्तित्व पर इतराते
कोई रोक टोक नहीं
कोई खौफ नहीं
बस खुल कर सांसें
लेती ये प्रकृति
प्रथम प्रहर की उस
ओस की बूंद सी है
निर्मल, निश्छल
फिर प्रकृति जन्मी है
हाँ यही है नवांकुर।
