नुकीले पत्थर
नुकीले पत्थर
कोई हटा दे पथ से
राह में पड़े नुकीले पत्थर
क्या है अस्तित्व में इनके
राहगीरों की बददुआएं
पथिकों की पीड़ाऐं
तपती धूप में निरंतर
चोट पर चोट खाते अक्सर
ताकती चारों तरफ निगाहें
किससे कहें इस तरफ ना आएं
याद है इन्हें अभी भी वह एहसास
खुद पर से जाती सरिता का उन्माद
बह -बह इस राह में अटके
कैसे कहें कि
कोई हटा दे पथ से।