नताजुर्बाकारी
नताजुर्बाकारी
अब सोचते हैं
तुमसे दिल लगाने
से पहले कितना सही होता न
जो इश्क़ में पड़ते हम भी
कई कई बार।
फूल सा
खिलते और
महसूसते कांटे जुदाई के
बना लेते यादों की
इक किताब,
और झांक लेते जब तब
उन तजुर्बों में
जब जरा भी लगता
इश्क़ में सही नहीं
कहीं कुछ!
फिर ढूंढ लाते हम
कोई खुशरंग तरकीब
वहीं से तुम्हे
मनाने की
ना तजुर्बकारी
हमारी
शर्मिंदा करती है
यह दिल तुम्हारा बहुत
दुखाती है।