नन्हीं कली का हत्यारा
नन्हीं कली का हत्यारा
हवा में मस्ती है भर आई
एक अलग सी खुशबू छाई
आज वो डाल खुब इठलाई
पहली बार उसपर कली आई
आसपास के बुजुर्ग पौधों ने समझाया
कली को उसका दयारा दिखलाया
उस नन्ही जान के पल्ले कुछ न आया
उसने तो सारी बगिया को अपना पाया
कुछ भौंरे दुर से भी आए
कली के इर्द-गिर्द मंडराएं
नए चेहरे देख कली मुस्कुराए
बेलों को ये फूटी आंख नहीं भाए
आज माली की नज़र भी उस पर पड़ी
क्या वो क्यारी से अलग थी खड़ी
या मदिरा की बुंद कुछ ज्यादा चढ़ी
कली भी उसे लगी फूल सी बड़ी
रात का सन्नाटा था
दबे पांव कोई आया था
चीखें भी उठी, आह भी गुंजी
पर पूरा गुलिस्तां सोया था
अगली सुबह बाग में चर्चे थे
ताकने झांकने पेड़ भी आए थे
भाई,"कली के लक्षण ठीक न थे"
ये शब्द, उन नाखूनों से तेज़ थे
पौधों की भीड़ कुछ कम हुई
पर डाली तो आज भी नम हुई
नारों में अब आंधी की परिवेश थी
दो पंखुड़ी अब भी कली में शेष थी
बाग के पहरे कड़े थे फिर ढिले हो गए
कुछ दिये जले, कुछ वक्त में बुझ गए
थककर डाली ने ही वो पाप कर दिया
जन्म दिया जिसे, उसे मुक्त कर दिया
समय बदला, एक नयी कली खिल गई
डाल आज़ पहले जैसी, खुश न हो पाई
फिज़ा में भी अब कुछ रवानी सी छाई
उस हैवान की हंसी फिर निकल आई।
