नन्हे कंधों पर बस्ता
नन्हे कंधों पर बस्ता
नन्हे कंधों पर हमने,
बस्ता कुछ ऐसा लादा है।
बचपन सारा छीन के उनसे,
बूढ़ा सा कर डाला है।
फुल अटेंडेंस के चक्कर में,
आए दिन की चिक चिक है।
सुबह नैन खुलें न फिर भी,
रोज की जबरदस्ती है।
छिन चुकी मासूमियत,
होशियारी सिखलायी जाती।
बेटा हो या हो बेटी,
कहने को ही बच्ची है।
धूप न देखे ओस न देखे,
न देखे बरसात को।
फर्स्ट आने के लालच में,
लुट गई सारी मस्ती है।
