प्रकृति
प्रकृति
प्रकृति की छटा निराली।
देखो देखो ये हरियाली।
भांति भांति के पशु पक्षी है,
और फूल हैं रंग बिरंगे।
गुनगुन करते भँवरे हैं तो,
भिन भिन करते कीट पतंगे।
कल कल चंचल, नदियां झरने,
अचल पहाड़, सजल सागर भी।
दुग्ध-मेखला ज्यों सर्प-कुंडली,
और धरती जैसे गागर सी |
सागर जैसा नभ है नीला,
और पुरवाई का झोंका है।
इंद्रधनुष है द्वार स्वर्ग का,
और बादल जैसे नौका है।
धरती जैसे इक उपवन सी,
और हम हो जैसे इसके माली।
प्रकृति की छटा निराली।
देखो देखो ये हरियाली।।
