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नज़्म

नज़्म

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फ़ुरकत ए गम की वो दास्तान क्या कहें

बंज़र हुआ दिल ए गुलिस्तान क्या कहें


हुश्न था बेपरवाह मिज़ाज मेरा लखनवी

वो मगरुरी की टक्कर वल्लाह क्या कहें


सिलसिले थम गए महफ़िल ए इश्क के

जिस्म में छुपी खुशबु की बातें क्या कहें 


गीले से तकिये संग करवटों वाली रातें है 

विरानियों की चिंगारी का मंज़र क्या कहें


खाली पड़े ये दो मग कॉफ़ी के हंसते हैं

दरवाजे पर दाग लिपस्टिक के क्या कहें


आगोश में महबूब की खुशबूओं के डेरे हैं

पर उधड़े हुए है इश्क के सिरे क्या कहें


वक्त की बेरहमी यूँ बरसी, ना ही ठहरे वो

ना ही हम रोक पाए नाकामी वो क्या कहें


फिरती है नज़रें अब दर ब दर उन्हें ढूँढती

दिल ए नादाँ की सरगोशियाँ वो क्या कहें


मिट्टी के तन मैं शीशे सा क्यूँ दिल टूटा

दर्द ए कहर की नासाज़गी अब क्या कहें।



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