नज्म़
नज्म़
नशा नाश कर देगी तेरे
यस वैभव सम्मान की
क्यूं डंका तू पीट रहा
अपनी झूठी अभिमान की
नशा नाश की जड़ है
सुनते आया बचपन से
डूब मरेगा तू भी इक दिन
दुश्मन है तेरे जान की
ए कश लगा के छल्ले तू
दिन रात बनाते रहता है
इक दिन तुझको कश लेगी
दुश्मन होगी तेरे प्राण की।
