नियति मेरी पीड़ाएं
नियति मेरी पीड़ाएं
नियति मेरी पीड़ाएं बस
हम हैं भारत की संतान
७६ साल में भी विकसित
नहीं हुआ मेरा देश महान
राजनीति में धड़धड़ चलती
महज वायदों की रेलगाड़ी
सत्तानशीन यहां खुद को
मानें सबसे बड़ा खिलाड़ी
भाग्यविधाता मतदाता की
बस मतदान के दिन ही पूछ
फिर पांच सालों तक उसके
खातों में वायदे आएं छूछ
माननीयों के भोग विलास
का यहां अजब ही भौकाल
विकसित देश के राजनेताओं
का शर्म से होता चेहरा लाल
जनता खांचों खांचों में बंटी
नेता नित्य मनाते यहां जश्न
बेरोज़गारी, असमानता औ
भेदभाव के पग पग उठे प्रश्न।