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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

नियत

नियत

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जिन लोगो की नीयत खराब है

वो खुद को मानते आफताब है

जिन लोगो की नीयत साफ है,

उनका हृदय ही काशी धाम है

जिनकी नियत में रहता खोट है

उन्हें सत्य में दिखता सदा रोग है

वे भीतर अपने बेईमानी रखते है,

उन्हें असत्य लगता छप्पन भोग है

जिन लोगो की नीयत साफ है

उनका हृदय ही काशी धाम है


बदनीयतवाले लंबे कब जाते है,

बीच राह में ही लटके रह जाते है,

इसलिये कहते है बेईमानी श्राप है

ईमानदारी ही सच मे लाजवाब है

पर बदनीयत वाले नही समझते,

वो बुराई को मानते उम्दा ख़्वाब है

पर तू बचना साखी बदनीयत से

बदनीयत वो जहरीली शराब है


तन से ज्यादा मन करती ख़राब है

रामजी को साफ मनवाले भाते है

उन्हें वो कहीं नज़र नही आते है

भीतर चलाते बेईमानी की नाव है

निर्मल मन ही ख़ुदा का धाम है

जिन लोगो की नीयत साफ है

उनका हृदय ही काशी धाम है



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