निर्मोही चूड़िया
निर्मोही चूड़िया
बचपन की रसोई में माँ के
होने का अहसास दिलाती चूड़ियाँ,
परोसते समय स्वाद बढ़ाती
माँ की खनकती चूड़ियाँ,
तरुणाई में प्रथम साड़ी पर
मन में सतरंगी सपने दिखाती चूड़ियाँ,
यौवन में मयूर पंखी बन
सावन में झूमती रंगीन चूड़ियाँ,
देह बनी दुल्हन सजी कलाई
बाबुल से विदा हुई लाल चूड़ियाँ,
साजन के आंगन में बरसते सावन
धानी चुनरी संग भीगती हरी चूड़ियाँ
लाल उतरा आँचल में माँ बनी
मेरी प्यारी के संग पीली चूड़ियाँ,
पर जब साजन जग से रूठ गए
तब सिसकती रह गयी टूटी चूड़ियाँ,
आज भी यादों के मोती संग
मैंने सहेजी है सारी चूड़ियाँ
ज्यों पिया निकले बैरी
त्यों निर्मोही हो गयी मेरी चूड़ियाँ.....।
