नींद न आती है न आएगी
नींद न आती है न आएगी
नींद न आती है न आएगी
रात की चौखट पे ठहर जाएगी।
कोई गीत गुनगुना भी लूँ आँखें मूँद भी लूँ
शिकायतों की साजिश है ये बाज़ ना आएगी।
वो भी दौर था जब जाम-ए-शहर था हमारे साथ
अब खाली प्यालों से शाम यूँ ही गुजारी जाएगी।
क्यों थे तुम परेशां, हम भी थे नादान
उस रात की बात इस रात से भी ना संभाली जाएगी।
सुबह की चढ़ती धूप दीवारों पे फिर नज़र आएगी
लड़खड़ाती मेरी आँखों को नम कर जाएगी।
ये सफर जो हम तय कर रहे हैं लगता है बस
मंज़िल पे पहुँचकर ख़ामोशी ही साथ रह जाएगी।
