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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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नेकी

नेकी

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शुक्र कर, कर शुक्रिया,

कुछ साँस तेरी चल रही है। 

थोड़ी-थोड़ी ही सही पर

आग कुछ तो जल रही है।


वर्ना तो अब ये शहर बस, 

 है फकत श्मशान जैसा।

चेहरा है मायूस हर एक,

लाश जैसे चल रही है।


भूख है सपने हैं कुछ एक ,

हैं अगर अरमान बाकी।

सेंक लो कुछ रोटियां ,

देखो सियासत जल रही है।


पत्थरों के बुत यहाँ हैं,

कौन सुनता है किसी की? 

कर दुआओं में असर,

नेकी वहीं बस पल रही है।


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