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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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मुहब्बत की नजर

मुहब्बत की नजर

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निगाहें अश्कों में ही तर रही है!

यादें दिल पे देती नश्तर रही है 


मुहब्बत की नजर से क्या देखेगा

वो आंखों प्यार से बंजर रही है


सहारा दें वफ़ा से जो हमेशा 

निगाहें ढूंढ़ती वो दर रही है 


उल्फ़त के तीर कब मुझसे चलाये 

चलाती वो आंखें ख़ंजर रही है


दिखाकर बेवफ़ाई की वो आंखें 

 मेरे दिल पे देती नश्तर रही है


कभी भी भेज उल्फ़त के नहीं गुल 

नफ़रत के मारती पत्थर रही है


सकूं आज़म नहीं है एक पल भी

परेशां उसकी यादें कर रही है! 

आज़म नैय्यर 


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