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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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डर

डर

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कई बार निज जीवन में हम

कुछ काम ऐसे भी जाते हैं कर।

करना जो नहीं हम चाहते हैं

पर करवा लेता है हमसे डर।


सुबह की वह नींद मीठी

प्यारी अति लगती हमें।

छुड़वा देता बिस्तर हमें

डांट-नाराजी का डर।


अपने करते हुए सब काम पूरे

विश्वास अर्जन है अति सुखद।

जल्दी उठकर या देर तक जग

काम करवाए विश्वास खोने का डर।


वादा करें देवव्रत बन करके जो

हम निभाएं उसे फिर भीष्म बन।

प्राण देकर निभाएं वचन को

उज्ज्वल कीर्ति खोने का है डर।


न जाने क्या है नियति में?

पर है विश्वास रखना कर्म में।

त्यागनी शुभता कभी ना

आत्मा अमर तो क्या है डर?


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