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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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नादान इश्क

नादान इश्क

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लड़कियां, 

बड़ी मासूम होती हैं,

दिल की नादान होती हैं, 

बातों की कच्ची होती हैं,

हर बात से अनजान होती हैं,

बात -बात पर घबरा जाती हैं,


बातों से ही पिघल जाती है,

दिल की मगर बहुत भोली होती हैं,

किसी पर झट यकीं कर लेती हैं,

वो नहीं जानती है,

दुनियां की चालबाजियों को


मक्कार और फरेबियों को,

जो उनकी मासूमियत का फायदा उठाते हैं,

उन्हें प्यार,मोहब्बत में फंसा लेते हैं,

वो नादान भी 

इस झूठ को


सच्चा प्यार समझ लेती हैं,

किसी अजनबी से आंखे चार कर लेती हैं,

अनजाने में दिल साझा कर लेती हैं,

उससे हर बात बयां कर उसे अपना सर्वस्व दे देती हैं,

उस नादान को कितना भी समझाओ 


ये प्यार मोहब्बत सब फरेब है,

मगर वो किसी की नहीं सुनती है,

चाहे मां बाप हो या संगी साथी 

ठुकरा के सबका साथ,

वो एक अलग रंगीन


दुनियां में खोई रहती हैं,

सच से कोसों दूर होती हैं,

निभाती है वो प्रेमी का साथ

आखिरी क्षण तक,

रखती है उस पर विश्वास 


दिल की हद तक,

जब कि वो ठगी जाती है

हर मोड़ पर छली जाती है,

बेरहम झूठे प्यार पर

अक्सर कुर्बान हो जाती है,

नादान लड़कियां ऐसी ही होती है

दिल की भोली होती हैं।


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