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Ramesh Chandra Sharma

Abstract

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Ramesh Chandra Sharma

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नदी तुम बहती क्यों हो

नदी तुम बहती क्यों हो

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सागर से प्रीत जोड़कर

पहाड़ से पीठ मोड़कर 

निरंतर निर्जन पथ पर

नदी तुम बहती क्यों हो ?


ऊंचाई से नीचे गिरकर

बार-बार गिर पड़कर

मनके समतल पठार में

नदी तुम बहती क्यों हो ?


पत्थर पर खुद घिसकर

महीन रेती पर पीसकर

कलकल निनाद करके

नदी तुम बहती क्यों हो ?


मेघों से भीख मांग कर,

हवा का हाथ थाम कर,

मीठा जल खारा करती

नदी तुम बहती क्यों हो ?


पर्वत से हाथ छुड़ाकर

बादल से पेंच लड़ाकर

पर्वत से जंग जीतकर

नदी तुम बहती क्यों हो ?


वनिता सी सज धजकर

अल्हड़ सी कल कलकर 

भावों में कविता भरकर

नदी तुम बहती क्यों हो ?


आंखों से रोजाना रिसकर

बार-बार जीकर- मरकर

तोड़ पलकों के तटबंध 

नदी तुम बहती क्यों हो ?


सभ्यता को सहेज कर

इतिहास को उकेर कर

आदिकाल से अनंतकाल

नदी तुम बहती क्यों हो ?


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