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Ramesh Chandra Sharma

Others

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Ramesh Chandra Sharma

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प्रकृति का प्रलय काल

प्रकृति का प्रलय काल

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वासंती घूंघट ओढ़कर

प्रमुदित सुंदर कामिनी

द्वारे दस्तक देने लगी

अलसाई सुबह उठकर !

प्रफुल्लित कुसुम देख

हर्षित हो उठे भ्रांत भ्रमर

सहज गुनगुनाने लगे

प्रकृति के प्रणय गीत !

दिग दिगंत उत्सव सजे

 वन उपवन खिल उठे

दुंदुभि बजाकर सुनाया

प्रकृति का प्रणय प्रसंग !

दरख़्तों में प्राण आए

शाखाएं लदने लगी

कलरव करते पंछी

घोसलों से निकल

पंख फड़फड़ाने लगे !

पारदर्शी नदियां बही

सूखते हुए किनारे

आँचल अपना फैला

सहमे सकुचे चुप रहे !

तितलियां उड़ने लगी

कलियां खुलने लगी

उत्सव के माहौल में

अमराई सी छाने लगी !

प्रिय का प्रस्ताव पाकर

निकल पड़ी नववधू

हाथ में कलश लिए

आंखों में काजल लगा !

अभिसार को आतुर

सौंदर्य की स्वामिनी

अमलतास की छांव तले

प्रतीक्षारत अपलक !

स्वागत द्वार सजाकर

नाच रहे मन के मयूर

लो फिर शुरू हो गया

प्रकृति का प्रणय काल !



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