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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract

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अरविन्द त्रिवेदी

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नारी

नारी

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पुरुष अधूरा नारी बिन है, बिना पुरुष के नारी जग में,

निज पुरुषत्व प्रभावों में तुम, नारी का अपमान न करना


विधना भी असहाय दिखी जब,

पुरुषतत्व को उसने जाया

धर नारीश्वर रूप शम्भु ने,

जाकर ब्रह्मा को समझाया

पाकर बोध विधाता शिव से,

करी सृष्टि की अनुपम रचना

निज पुरुषत्व प्रभावों में तुम,

नारी का अपमान न करना।


पावन गंगा की धारा सी,

जीवन के हर दुख को हरती

कभी द्रौपदी, सीता बनकर,

दुष्टान्तों का कारण बनती।

तप बल से माँ अनुसुइया ने,

तीनों देव झुलाए पलना

निज पुरुषत्व प्रभावों में तुम,

नारी का अपमान न करना।


निजता पर यदि संकट आए,

लक्ष्मीबाई बन जाती है

भक्ति - प्रेम में वैरागी बन,

मीराबाई कहलाती है।

आँच प्रतिष्ठा पर आए यदि, देखो !

पद्मिनियों का जलना

निज पुरुषत्व प्रभावों में तुम,

नारी का अपमान न करना।


त्याग तपस्या की मूरत है,

परिवारों का पोषण करती

सावित्री सतीत्व के बल पर,

देख ! काल से जाकर भिड़ती।

संबलता का सूचक नारी,

ममता का वह मीठा झरना

निज पुरुषत्व प्रभावों में तुम,

नारी का अपमान न करना।


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