नारी
नारी
नारी हूँ नारी का सम्मान करना जानती हूँ
कोमल हृदय में चट्टान सा धैर्य रखना जानतीं हूँ
संवेदनहीन नहीं हूँ इसलिए ममता लुटाना जानती हूँ
जिन हाथों में करछी (कलछी) है उन हाथों से क़लम चलाना जानती हूँ
बँधे हो ग़र पैर भी तोड़ के बंधन नभ में उड़ना जानती हूँ
जो आन पड़े विपत्ति कभी दुश्मनों के ख़िलाफ़ लड़ना जानती हूँ
कोई भी काम नहीं अब मुश्किल उसको आसान करना जानती हूँ
कमजोर नहीं हूँ ना अबला नारी हूँ अपने हर कर्तव्य अधिकार जानती हूँ
मौन रहूँ तो ये न समझना बोलना हमें आता नहीं
ज़रूरत पडे गर तो दहाड़ना जानती हूँ
कहने को होते दो दो घर हमारे पर
अपना होता नहीं उस मकान को घर बनाना जानती हूँ
शिक्षित हूँ जागरूक हूँ, करने को प्रकाशित
नारी को उनमें रश्मि सा तेज़ फैलाना जानती हूँ
नारी हूँ नारी का सम्मान करना जानती हूँ
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः